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उत्स॑क्थ्या॒ऽअव॑ गु॒दं धे॑हि॒ सम॒ञ्जिं चा॑रया वृषन्। य स्त्री॒णां जी॑व॒भोज॑नः ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्स॑क्थ्या॒ इत्युत्ऽस॑क्थ्याः। अव॑। गु॒दम्। धे॒हि॒। सम्। अ॒ञ्जिम्। चा॒र॒य॒। वृ॒ष॒न्। यः। स्त्री॒णाम्। जी॒व॒भोज॑न॒ इति॑ जीव॒ऽभोज॑नः ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा को दुष्टाचारी प्राणी भलीभाँति दण्ड देने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषन्) शक्तिमन् ! (यः) जो (स्त्रीणाम्) स्त्रियों के बीच (जीवभोजनः) प्राणियों का मांस खानेवाला व्यभिचारी पुरुष वा पुरुषों के बीच उक्त प्रकार की व्यभिचारिणी स्त्री वर्त्तमान हो, उस पुरुष और स्त्री को बाँध कर (उत्सक्थ्याः) ऊपर को पग और नीचे को शिर कर ताड़ना करके और अपनी प्रजा के मध्य (अव, गुदम्) उत्तम सुख को (धेहि) धारण करो और (अञ्जिम्) अपने प्रकट न्याय को (सञ्चारय) भलीभाँति चलाओ ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो विषय-सेवा में रमते हुए जन वा वैसी स्त्री व्यभिचार को बढ़ावें, उन-उन को प्रबल दण्ड से शिक्षा देनी चाहिये ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्ञा दुष्टाचाराः सम्यग्दण्डनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(उत्सक्थ्या) उर्ध्वं सक्थिनी यस्यास्तस्याः प्रजायाः (अव) (गुदम्) (क्रीडाम्) (धेहि) (सम्) (अञ्जिम्) प्रसिद्धन्यायम् (चारय) प्रापय। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (वृषन्) शक्तिमन् (यः) (स्त्रीणाम्) (जीवभोजनः) जीवा भोजनं भक्षणं यस्य सः ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषन् ! यः स्त्रीणां जीवभोजनो व्यभिचारी व्यभिचारिणी वा स्त्री वर्त्तेत, तं तां च निगृह्योत्सक्थ्यास्ताडय स्वप्रजायां च गुदमव धेह्यञ्जिं संचारय ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! ये विषयसेवायां क्रीडन्तो जनाः क्रीडन्त्यः स्त्रियो वा व्यभिचारं वर्द्धयेयुस्ते ताश्च तीव्रेण दण्डेन शासनीयाः ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जे स्री व पुरुष विषयी असतात आणि व्याभिचार वाढवितात त्यांना प्रचंड शिक्षा करावी.